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मालवा निमाड़ की शान गणगौर पर्व नगर डही में बड़ी भव्यता एवं भक्ति के साथ मनाया गया 

 मालवा निमाड़ की शान गणगौर पर्व नगर डही में बड़ी भव्यता एवं भक्ति के साथ मनाया गया 

डही -गणगौर पर्व मालवा और निमाड़ का गौरवपूर्ण पर्व है चैत्र माह की तीज को मनाए जाने वाला यह महापर्व एक महा उत्सव के रूप में संपूर्ण मध्य प्रदेश के निर्माण- मालवांचल में भक्ति और आस्था की अनूठी छठा बिखेरते हुए मनाया गया।वही डही-क्षेत्र में बड़ी ही धूम धाम सें मनाया जाने वाला गणगौर पर्व पर


आज माता जी मंदिर में बाड़ी खोली गईं, और रथो में माता स्वरुपा को नगर भृमण कराया गया । इस दौरान विधिवत पूजन, जागरण आदि इस पर्व पर सम्पूर्ण डही नगरवासियों द्वारा एक होकर इस पवित्र त्यौहार गणगौर पर्व को बड़ी ही धूम- धाम सें मनाया गया।


गणगौर पर्व से जुड़ी मान्यताएं
मालवा – निमाड़ का सबसे बड़ा महापर्व गणगौर यानि रणुबाई (पार्वती )और धनीयर राजा ( भगवान शिव) के आगमन पर ढोल–ताशो के साथ उन्हें घर लाने का पर्व है। चैत्र सुदी शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन घरों में तैयारीयां की जाती हैं। एक ऐसा लोक पर्व मनाने की जिसमें भगवान शंकर को दामाद एवं माता पार्वती को बेटी के रूप पुजा जाता है। ऐसा सम्भवतः निमाड़ क्षेत्र में ही होता है जहां बेटी के साथ दामाद को भी 9 दिनों तक पूजा जाता है।

माता की बाड़ी में सुबह से पूजा करने वालों की भीड़
सुबह से ही माता की बाड़ी में नव विवाहित जोड़ों से लेकर बच्चे, बड़े सब गणगौर माता की पूंजा अर्चना में जुट जाते हैं। माता की बाड़ी में गणगौर माता के प्रतीक रूप में ज्वारे बो कर गौरी यानि पार्वती का पूजन किया जाता है। गणगौर बेटी के साथ जमाई के पूजे जाने का पर्व है। बेटी एवं दामाद के आगमन का यह पर्व बेटियों के प्रति प्रेम और आस्था जगाता है ।

आदि शक्ति मां गौरी की आराधना का पर्व
वही सम्पूर्ण डही नगर आदि शक्ति मां गौरी की आराधना में लग जाता है। चैत्र नवरात्रि में गणगौर लोक पर्व के चलते माता की आगवानी को लेकर लोग आठ दिन पूर्व से तैयारियां करने लग जाते हैं। मन्दिर में जहां विधि-विधान से बांस की बनी टोकरियों में गेंहू के जवारे बोए जाते हैं जिसे किवदन्तियों के अनुसार रणुबाई (माता गौरी) का प्रतीक माना जाता है। वही दो दिन पहले लोग विशेष रूप से रथ तैयार करते हैं जो आज के दिन जवारे रूपी माता के प्रतीक रूप मैं उस रथ में रख कर साथ में धनियर राजा का रथ बना कर जोड़े से गाजे–बाजे के साथ घर लाया जाता है, इस दौरान रास्ते भर नव विवाहित जोड़े रथ एवं रथ को सर पर रखने वाली महिलाओ के चरण आस्था के साथ धोते हैं और घर पर लाने के बाद जोड़े द्वारा पहले विधि-विधान से रणु बाई को भोग लगते हैं और साथ में धनियर राजा यानि भगवान शंकर का पूजन करते हैं। उसके बाद ही घर के सभी लोग पूजा-अर्चना करते हैं। तीन दिनों तक रथ को घर में रखने के बाद जवारे विसर्जन किए जाते हैं। नगर के बस स्टैंड पर लोग इकठ्ठा होकर जवारे को गले लगा कर विदाई देते हैं। कुछ मन्नत वाले या समाज के लोग रथ बोड़ाते हैं, जिसे रथ रोकना कहते हैं वह अपने घर या मंदिर में रथ को रोक कर प्रसादी का आयोजन करते हैं। अगले दिन फिर विदाई होती है।

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