प्रतिभा प्रलाप नहीं करती, प्रयास करती है।
भारत का लाल ड्रोन प्रताप,युवा वैज्ञानिक।
२२ वर्षीय युवा एक माह में २८ दिन विदेश यात्रा करता हैं। फ्रांस ने उसे अपने यहां नौकरी करने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें उसे सोलह लाख रुपए प्रतिमाह वेतन, ५ शयनकक्ष का घर और ढाई करोड़ की कार देने का प्रस्ताव दिया गया।
परंतु उसने यह बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी द्वारा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को उसका संविलियन करने के आदेश दे दिए गए थे ।
आइए, वह बालक कौन है इसके बारे में हम जानें –
मैसूर कर्नाटक के निकट दूरस्थ ग्रामीण अंचल में कदईकड़ी में बालक ने जन्म लिया। पिता कृषक थे। पिता की आय केवल २००० रुपये मासिक।
बचपन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रति रुचि थी। प्राथमिक कक्षा से ही निकट के साइबरकेफे में यह बालक जाता था और दुनिया भर की एविएशन स्पेस वेबसाइट में डूबा रहता। टूटी फूटी भाषा में वैज्ञानिकों को ईमेल भेजता।
वह इंजीनियरिंग करना चाहता था पर आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण बीएससी भौतिक करना पड़ा। छात्रावास का शुल्क न देने के कारण उसे वहां से निकाला गया। वह मैसूर बस स्टैंड पर सोता और सार्वजनिक टॉयलेट का उपयोग करता।
उसने अपने परिश्रम से संगणकीय भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और ईवेस्ट के माध्यम से ड्रोन बनाना सीखा। अभी तक ६०० से अधिक ड्रोन बना चुके इस बालक को पहला ड्रोन बनाने के लिए ८० बार प्रयत्न करना पड़ा।
आई.आई.टी. दिल्ली में ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने वह रेल के सामान्य श्रेणी में गया और द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
जापान में आयोजित विश्व ड्रोन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उसे अपनी थीसिस चेन्नई के प्रोफ़ेसर से अनुमोदित करानी पड़ी, जिसे यह लिखने में दक्ष नहीं है ऐसी टिप्पणी के साथ अनुमोदित कर दिया गया।
जापान जाने के लिए ₹६० हजार की आवश्यकता थी। मैसूर के एक व्यक्ति द्वारा उसके आने-जाने के टिकट प्रायोजित किए गए। ऊपरी खर्च के लिए उसने अपनी मां का मंगलसूत्र बेचकर व्यवस्था की। जब वह जापान उतरा तो उसकी जेब में मात्र १४०० रुपए थे।
आयोजन स्थल तक जाने के लिए महंगी बुलेट ट्रेन का टिकट ले पाना संभव नहीं था। १६ स्थानों पर लोकल ट्रेन बदलते बदलते और अंत के ८ किलोमीटर पैदल चलते हुए वह आयोजन स्थल पर पहुंचा, जहां १२७ देशों के प्रतियोगी भाग ले रहे थे।
जब परिणाम घोषित किया जा रहा था तो उसमें टॉप टेन के १० वें क्रमांक से २ तक उसका नाम नहीं आया तो वह निराश होकर वापस हो रहा था। तभी निर्णायक ने घोषित किया *गोल्ड मेडलिस्ट प्रताप,भारत*। वह खुशी से उछल पड़ा। उसने अपनी आंखों से यूएसए का ध्वज नीचे उतरते और भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा ऊपर जाते हुए देखा। पुरस्कार स्वरुप उसे १० हजार यूरो प्रदान किए गए।
भारतीय प्रधानमंत्री और कर्नाटक के विधायक और सांसदों ने भी उसे बधाइयां दी। आज यह प्रतिभाशाली बालक रक्षा अनुसंधान और रक्षा विकास संगठन में वैज्ञानिक के पद पर सेवारत है। यह और कोई नहीं अपने नाम के अनुरूप प्रताप दिखाने वाला प्रताप ही है। जी हां प्रताप।
प्रतिभा प्रलाप नहीं करती, प्रयास करती है और प्रतिष्ठा अर्जित करती है। पैसा आवश्यक है पर Passion उससे भी अधिक आवश्यक।