अमरदीप नारायण प्रसाद
वशिष्ठ नारायण सिंह जी के सही देखभाल की अभाव ,राज्य सरकार और केंद्र सरकार की उदासितन के कारण महान गणितग्य के हाल देख :आशु रोक नही पाएंगे।
इन्होंने कई ऐसे रिसर्च किए, जिनका अध्ययन आज भी अमेरिकी छात्र कर रहे हैं। जो NASA से IIT तक अपनी प्रतिभा से सबको चौका दियें।
मगर वह आज अपने ही देश और राज्य में गुमनामी का जिन्दगी जी रहे है।
मानसिक बीमारी सीजोफ्रेनिया से ग्रसित हैं।
इसके बावजूद वे मैथ के फॉर्मूलों को सॉल्व करते रहते हैं। इनका हालत देख आपके आँखें भी नम हो जाएंगी।
बिहार के वसिष्ठ नारायण सिंह जी कोई गणित का भगवान कहता है तो कोई जादूगर। एक जमाना था जब इनका नाम गणित के क्षेत्र में पूरी दुनिया में गूंजता था मगर आज बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले महान गणितज्ञ डा. वशिष्ठ नारायण सिंह वर्षों से सीजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी की वजह से कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं।
इसमें कोई सक नहीं की अगर वह आज ठीक होते तो अभी तक गणित का इनको नोवेल प्राईज जरुर मिल गया होता।
डा वशिष्ठ नारायण सिंह ने न सिर्फ आइंस्टिन के सिद्धांत E=MC2 को चैलेंज किया, बल्कि मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाने वाला गौस की थ्योरी को भी उन्होंने चैलेंज किया था।
ऐसा कहा जाता है कि अपोलो मिशन के दौरान डा सिंह नासा में मौजूद थे, तभी गिनती करने वाले कम्प्यूटर में खराबी आ गई। ऐसे में कहा जाता है कि डा वशिष्ठ नारायण सिंह ने उंगलियों पर गिनती शुरू कर दी।
बाद में साथी वैज्ञानिकों ने उनकी गिनती को सही माना था।
अमेरिका में पढ़ने का न्योता जब डा वशिष्ठ नारायण सिंह को मिला तो उन्होंने ग्रेजुएशन के तीन साल के कोर्स को महज एक साल में पूरा कर लिया था !
2 अप्रैल 1942 को बिहार के भोजपूर जिले के बसंतपुर गाँव में जन्मे महान गणितज्ञ “डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह” की प्राइमरी और सेकेंडरी की स्कूली शिक्षा नेतरहाट विद्यालय से हुई.
पटना साइंस कॉलेज ने प्रथम वर्ष में ही उन्हें B Sc (Hons) की परीक्षा देने की अनुमति दे दी. 1969 में अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, बर्कली से Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vector विषय पर PhD की उपाधि मिलने के बाद डॉ वशिष्ठ नारायण NASA के Associate Scientist Professor पद पर आसीन हुए.
1971 में उनकी शादी हुई परन्तु कुछ ही वर्षों बाद बीमारी की वजह से वे अपनी पत्नी से अलग हो गए.
1972 में भारत वापस आकर IIT कानपुर ,TIFR मुंबई, और ISI कलकत्ता के लेक्चरर बने. 1977 में मानसिक बीमारी “सीजोफ्रेनिया” से ग्रसित हुए जिसके इलाज के लिए उन्हें रांची के कांके मानसिक अस्पताल में भरती होना पड़ा. 1988 ई. में कांके अस्पताल में सही इलाज के आभाव में बिना किसी को बताए कहीं चले गए. 1992 ई. में सिवान,बिहार में दयनीय स्थिति में डॉ वशिष्ठ नारायण को लोगों ने पहचाना.
एक बूढ़े आदमी हाथ में पेंसिल लेकर यूंही पूरे घर में चक्कर काट रहे हैं. कभी अख़बार, कभी कॉपी, कभी दीवार, कभी घर की रेलिंग, जहां भी उनका मन करता, वहां कुछ लिखते, कुछ बुदबुदाते हुए.
घर वाले उन्हें देखते रहते हैं, कभी आंखों में आंसू तो कभी चेहरे पर मुस्कराहट ओढ़े.
यह 70 साल का ‘पगला सा’ आदमी अपने जवानी में ‘वैज्ञानिक जी’ के नाम से मशहूर था.
सवाल वही आज बिहार टॉप करने वाले फ़ैल हो रहे है ।
लेकिन जो दुनिया में टॉप में आते उनको कोई पूछने वाला नहीं इसके लिए दोषी कौन है सोचना आपको है हम कहाँ जारहे है